“खान सर ने कहा: किताबें ही हैं जो जीवन में ऊंचाइयां दिलाती हैं” | Khan Sir | Book Fair
पटना के गांधी मैदान में चल रहे पटना पुस्तक मेला-2024, जो सीआरडी (CRD) द्वारा आयोजित है, में रविवार को मशहूर शिक्षक खान सर ने शिरकत की। उन्होंने दैनिक जागरण द्वारा आयोजित ‘सान्निध्य’ कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अपने प्रेरणादायक विचार साझा किए।
शिक्षा का महत्व: “हाथ में किताब जरूर होनी चाहिए”
खान सर (Khan Sir) ने पुस्तक मेला के मंच से युवाओं और छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, “पैर में भले हवाई चप्पल न हो, लेकिन हाथ में किताब जरूर होनी चाहिए।” उन्होंने अधिक से अधिक किताबें पढ़ने की अपील की और इसे जीवन में सफलता का आधार बताया।
उन्होंने कहा, “शिक्षा ही वह माध्यम है, जिससे एक गरीब व्यक्ति भी बुलंदियों को छू सकता है।” उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि 15 साल पहले वे किताबें खरीदने इस मेले में आया करते थे, और आज यहां उनकी खुद की किताबें उपलब्ध हैं। यहाँ आप उनका पूरा वीडियो देखें सकते हैं.
महिलाओं की शिक्षा पर जोर
महिला शिक्षा पर जोर देते हुए खान सर ने कहा, “जो बेटियों को पढ़ने नहीं देते, उन्हें भविष्य में महिला डॉक्टर खोजने का नैतिक अधिकार नहीं है।” उन्होंने समाज से बेटियों की शिक्षा में भेदभाव खत्म करने की अपील की और इसे परिवार और समाज के लिए आवश्यक बताया।
बीमारी के बावजूद मेले में शिरकत
खान सर ने अपनी तबीयत ठीक न होने का जिक्र करते हुए कहा, “अगर यह कोई सामान्य कार्यक्रम होता, तो मैं नहीं आ पाता। लेकिन यह पुस्तक मेला है, और मैं शिक्षा प्रेमी हूं, इसलिए खुद को आने से रोक नहीं पाया।” उन्होंने बताया कि ज्यादा बोलने से उन्हें खांसी और उल्टी हो जाती है, लेकिन शिक्षा और किताबों से जुड़ा यह आयोजन उनके लिए विशेष था।
लोक गायिका शारदा सिन्हा और साहित्यकार उषा किरण खान को श्रद्धांजलि
पटना पुस्तक मेला इस बार दो दिवंगत महिला विभूतियों, लोक गायिका शारदा सिन्हा और साहित्यकार उषा किरण खान को समर्पित है। अपने संबोधन में खान सर ने शारदा सिन्हा को याद करते हुए कहा, “आज के भोजपुरी आर्केस्ट्रा वाले खुद को स्टार कहते हैं, लेकिन शारदा सिन्हा जैसी सच्ची स्टार हमारे समाज की शान थीं। उनके गीतों के बिना छठ पर्व अधूरा लगता है।”
उन्होंने बताया कि उन्हें शारदा सिन्हा की उपस्थिति में बिहार केसरी अवार्ड और बिहार अस्मिता बिहार गौरव पुरस्कार पाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि छठ पर्व के दिन उनका जाना पूरे बिहार के लिए एक बड़ी क्षति थी.
पुस्तक मेले में खान सर को सुनने और देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ पड़ी। हालांकि, अपनी स्वास्थ्य स्थिति के कारण वे मंच पर केवल कुछ मिनट ही बोल सके। फिर भी उनकी उपस्थिति ने शिक्षा के प्रति जागरूकता और प्रेरणा को बढ़ावा दिया।
पुस्तक मेला में हर आयु वर्ग के लिए साहित्य और शिक्षा को समर्पित गतिविधियां हो रही हैं, जो इसे बिहार की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत का अद्भुत प्रतीक बनाती हैं।