NewsPolitics

बिहार: महागठबंधन में गाँठ शेष रह गयी है, बन्धन नहीं-कुमार सर्वेश

बिहार में राजद महागठबंधन को नेतृत्व प्रदान कर रहा है और इस नाते बिहार में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका है। अत: उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपेक्षाकृत उदार रवैया अपनाये, क्योंकि महागठबंधन का सर्वाधिक लाभ उसे ही मिलेगा। उसे एक बात और समझनी होगी कि यह संसदीय चुनाव है और सबसे बड़े विपक्षी दल होने के नाते काँग्रेस को महागठबंधन में तरजीह मिलनी चाहिए, ठीक उसी प्रकार जिस पुकार विधानसभा चुनाव में राजद का सबसे बड़ा स्टेक होता है।

इण्डिया गठबंधन में सीट शेयरिंग का फ़ॉर्मूला अभी भी अधर में लटका हुआ है, लेकिन राजद ने न केवल विभिन्न संसदीय क्षेत्रों से अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करनी शुरू कर दी, वरन् सूत्रों के अनुसार इसने पार्टी सिम्बल भी देनी शुरू कर दिया। पहले चरण में चार संसदीय क्षेत्रों के के लिए अपने उम्मीदवारों के नाम की घोषणा के बाद आज एक बार फिर से राजद ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए अपने कुछ और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की। इससे सीपीआई को शह मिली और उसने न भी बेगूसराय, मधुबनी और बाँका सीट पर दावा करते हुए रणनीति के तहत् बेगूसराय की सीट पर अपने उम्मीदवार के रूप में ज़िला मंत्री अवधेश राय के नाम की घोषणा कर दी। इसके कारण महागठबंधन की गुणा-गणित और भी उलझ गया है, विशेष रूप से राजद के इस रवैये को लेकर काँग्रेस में गहरी नाराज़गी है।

काँग्रेस की बढ़ती नाराज़गी:

ध्यातव्य है कि काँग्रेस दस से कम सीटों पर मानने के लिए तैयार नहीं है और इनमें भी वह कटिहार, पूर्णिया, बेगूसराय, नवादा, औरंगाबाद और सासाराम की सीट पर अड़ी हुई है। वह वरिष्ठ काँग्रेसी नेता तारिक अनवर के लिए कटिहार, पप्पू यादव के लिए पूर्णिया, कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय, निखिल कुमार के लिए औरंगाबाद और मीरा कुमार के लिए सासाराम की सीट चाहती है। इसके अलावा, उसका दावा सुपौल की सीट पर भी है जहाँ से रंजीता रंजन, पप्पू यादव की पत्नी जीतती रही हैं और जो वर्तमान में राज्यसभा सांसद हैं। लेकिन, राजद काँग्रेस को पटना साहिब सीट देना चाह रहा है जहाँ से जीत असंभव नहीं, तो मुश्किल अवश्य है।
राजद और सीपीआई की तर्ज़ पर 23 मार्च को काँग्रेस ने भी पटना साहिब सीट के अलावा अन्य पाँच सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है: सासाराम से मीरा कुमार, मुज़फ़्फ़रपुर से विजेन्द्र चौधरी, पूर्णिया से पप्पू यादव, किशनगंज से मोहम्मद जावेद और मोतिहारी से आकाश कुमार। लेकिन, सीटों की इस घोषणा के क्रम में तीनों दलों ने अतिरिक्त सावधानियाँ बरती है। जिन सीटों पर उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गयी है, उनमें से अधिकांश सीटें ऐसी हैं जिनको लेकर गठबंधन में शामिल दलों के बीच कुछ हद तक सहमति है। इसी कारण मोल-तोल की संभावनाएँ अभी बची हुई हैं, और एडजस्टमेंट की गुंजाइश शेष है।

माले से गहराते मतभेद:

लेफ़्ट ब्लॉक से सीपीआई (माले महागठबंधन का एक महत्वपूर्ण घटक दल है। विधानसभा में इसके बारह सदस्य हैं और मगध क्षेत्रों इसकी अच्छा खासा प्रभाव है।राजद माले को तीन सीटें देने के लिए तैयार है, लेकिन इन तीन सीटों में वह नालन्दा को एडजस्ट करने की कोशिश में है जो कुर्मी-बहुल संसदीय क्षेत्र है। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह-क्षेत्र भी है और इस कारण मुख्यमंत्री का स्ट्रांगहोल्ड माना जाता है। राजद माले को आरा, काराकट और नालन्दा की तीन सीटें देने पर सहमत है, लेकिन माले 4-5 सीटों की माँग कर रही है जिसमें सीवान की सीट भी है। सीवान की सीट माले के पारम्परिक सीट मानी जाती है और यह माले का स्ट्रांगहोल्ड है। सीपीआई (माले) आरा से सुदामा प्रसाद, काराकट से राजाराम कुशवाहा और नालन्दा से संदीप सौरभ को उतारने के लिए तैयार तो है, लेकिन सीवान की सीट छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसीलिए सीवान को लेकर राजद और माले के बीच मतभेद सतह पर है। जहाँ माले सीवान की सीट पर अड़ी हुई है, वहीं राजद सीवान से स्वयं लड़ना चाहती है।

सीपीआई से भी मतभेद:

लेफ़्ट ब्लॉक के अन्य घटकों में सीपीआई और सीपीआई(एम) को राजद क्रमशः बेगूसराय और खगड़ियाँ सीट देने पर सहमत है, लेकिन सीपीआई के द्वारा बेगूसराय के अलावा मधुबनी और बाँका सीट के लिए दबाव बनाया जा रहा है। लेकिन, संभव है कि सीपीआई केवल बेगूसराय पर भी मान जाये, या फिर अधिक-से-अधिक उसके लिए बाँका की सीट छोड़नी पड़े। लेकिन, राजद के लिए ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि बाँका से जय प्रकाश यादव और मधुबनी से अली असरफ फ़ातिमी, जो मूलतः राजद में ही थे और अभी-अभी जद(यू) छोड़कर राजद में आये हैं।

राजद के फर्ज:

बिहार में राजद महागठबंधन को नेतृत्व प्रदान कर रहा है और इस नाते बिहार में उसकी नेतृत्वकारी भूमिका है। अत: उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपेक्षाकृत उदार रवैया अपनाये, क्योंकि महागठबंधन का सर्वाधिक लाभ उसे ही मिलेगा। उसे एक बात और समझनी होगी कि यह संसदीय चुनाव है और सबसे बड़े विपक्षी दल होने के नाते काँग्रेस को महागठबंधन में तरजीह मिलनी चाहिए, ठीक उसी प्रकार जिस पुकार विधानसभा चुनाव में राजद का सबसे बड़ा स्टेक होता है। अन्य दलों, विशेषकर काँग्रेस की तुलना में उसके कहीं अधिक हित दाँव पर लगे होते हैं, और इसीलिए उसे कहीं अधिक स्पेस मिलना चाहिए। साथ ही, काँग्रेस को भी यह बात समझनी चाहिए कि भले ही वह राष्ट्रीय दल है, लेकिन उसकी स्थिति भी कमजोर है और उसका नेतृत्व भी कमजोर एवं अप्रभावी है। इतना ही नहीं, उसे यह भी समझना होगा कि महत्वपूर्ण सीटों की संख्या नहीं है, महत्वपूर्ण है जीत की प्रत्याशा। उसे विधानसभा-चुनाव,2020 से सबक़ लेना चाहिए, जिसमें उसे भले ही 70 सीटें मिली थीं, लेकिन उनमें 25-30 सीटें ऐसी थी जहाँ पर महागठबंधन के किसी घटक दल ने पिछले 25-30 वर्षों के दौरान जीत नहीं हासिल की। यही कारण है कि वर्ष 2020 में विधानसभा-चुनाव परिणाम सामने आने पर महागठबंधन में शामिल दलों में काँग्रेस का स्ट्राइक रेट सबसे कमजोर रहा। इसके अतिरिक्त, काँग्रेस को इस बात का ख़्याल भी रखना होगा कि ज़रूरत पड़ने पर पशुपति कुमार पारस और मुकेश साहनी के लिए भी स्पेस बने रहना चाहिए, ताकि महागठबंधन की चुनावी संभावनाएँ बेहतर हो सकें।
संक्षेप में कहें, तो सबसे बड़े घटक दल होने और नेतृत्वकारी भूमिका में होने के नाते राजद और लालू प्रसाद यादव को भाजपा से सीख लेनी चाहिए और हठधर्मिता छोड़ते हुए अपने घटक दलों के प्रति उदार रवैया अपनाते हुए शीट शेयरिंग के मसले का जल्द-से-जल्द सुलझाना चाहिए और अपना पूरा फ़ोकस घटक दलों के बीच बेहतर केमिस्ट्री डेवलप करने पर फ़ोकस करनी चाहिए; अन्यथा भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन चालीस में चालीस सीटें जीत ले, तो आश्चर्य नहीं होगा; जबकि सब कुछ ठीक रहा और महागठबंधन ने इस मसले को संवेदनशीलता से हैंडल करने की कोशिश की, तो एनडीए गठबंधन बीस के नीचे आ जाये, तो आश्चर्य नहीं होगा।

नोट: यह लेखक का निजी राय है।

कुमार सर्वेश

लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं। बिहार की राजनीति में उनकी गहरी रुचि है।

Related Articles

Back to top button